कुछ चीज़ें आपके काबू से बाहर होती हैं। इस बात को जितना जल्दी हो सके स्वीकार कर लें। इससे आपके लिए अपनी समस्याओं को काबू करना आसान होगा। बेशक यह कहना आसान है और करना जरा मुश्किल, लेकिन आपके पास इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है !! जिन चीजों पर आपका नियंत्रण नहीं, उन्हें लेकर परेशान होने से फायदा भी क्या है ?
आजकल सामाजिक उत्कंठा एक बड़ी समस्या बन गई है। इसे हम अकसर सोशल एन्जायटी के नाम से जानते हैं। अगर आपका छोटी-छोटी बातों पर दिल घबराने लगता है या लोगों के बीच जाने पर अचानक आपके दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं, मन बेचैन हो उठता है और समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए या फिर अगर रात को सोते समय आप करवटें बदलते रहते हैं और किसी भी तरह आपके मन को शांति नहीं मिलती तो ये सामाजिक उत्कंठा मतलब की सोशल एन्जायटी के लक्षण हो सकते हैं। जिसे सामाजिक संत्रास (social phobia) भी कहते हैं। जिससे निपटने के लिए आपको सही रणनीति की जरूरत होती है। आज की बदलती जीवनशैली और बढ़ते तनाव के कारण लोगों में यह समस्या तेजी से बढ़ रही ।
ये क्या है संत्रास (phobia) ?
संत्रास एक प्रकार का रोग है, जिसमें इंसान को किसी खास वस्तु, कार्य एवं परिस्थिति के प्रति भय उत्पन्न हो जाता है। संत्रास में अपने खुद के द्वारा एक डर की सोच उत्पन्न हो जाती है जो व्यक्ति को इतना डरा देती है कि उसकी मानसिक व शारीरिक क्षमताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। इसमें इंसान का डर वास्तविक या काल्पनिक दोनों ही हो सकते हैं। आमतौर पर किसी भी तरह के संत्रास से ग्रस्त रोगी अपने डर पर पर्दा डाले रहते हैं। उन को लगता है कि अपना डर दूसरों को बताने से लोग उन पर हंसेंगे। इसीलिए वे अपने डर व उन परिस्थितियों से सामना करने की बजाय बचने की हर सम्भव कोशिश करते हैं।
सोशल फोबिया से ग्रस्त इंसान कुछ विशेष परिस्थितियों से डरते हैं। उन्हें लगता है कि लोग उनके बारे में बुरा सोचते हैं और पीठ पीछे उनकी बुराइयां करते हैं। ऐसे में व्यक्ति समाज के सामने अपने आपको छोटा समझने लगता है और उसका आत्मविश्वास कमजोर पड़ता जाता है। लोगों के सामने वह बोल नहीं पाता है और डरा सा रहता है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह रोग अधिक देखा जाता है। इस रोग के होने तथा बढ़ने में पारिवारिक और आस-पास के माहौल का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह अनुवांशिक भी हो सकता है या फिर किसी बुरी घटना का साक्षी होने की वजह से एन्जायटी डिस्ऑर्डर के लक्षणों में छोटी-छोटी बात पर घबरा जाना, लोगों के बीच जाने पर या बात करने पर दिल की धड़कन बढ़ना, पसीने छूटना, दिमाग का काम न करना, फैसला करने की क्षमता कम होना, बोलते हुए घबराहट, पेट में हलचल महसूस होना तथा हाथ-पैरों में कंपन होना आदि शामिल होते हैं।
अच्छे और सकारात्मक लोगों से दोस्ती और आपकी सकारात्मक भावना और हिम्मत ही आपको सोशल एन्जायटी से बाहर आने में सबसे ज्यादा मदद कर सकती है। किसी भी घटना, किसी भी विषय और किसी भी व्यक्ति के प्रति अच्छा सोचें, उसके विपरीत न सोचे। दूसरे के प्रति अच्छा सोचेंगे, तो आप स्वयं के प्रति भी अच्छा करेंगे। कटुता से कटुता बढ़ती है। मित्रता से मित्रता का जन्म होता है। आग, आग लगाती है और बर्फ ठंडक पहुँचाती है।
सकारात्मक सोच बर्फ की डली है जो दूसरे से अधिक खुद को ठंडक पहुँचाती है। यदि आप इस मंत्र का प्रयोग कुछ महीने तक कर सके तब आप देखेंगे कि आप के अंदर कितना बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया है। जो काम सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन नहीं कर सकता, सैकड़ों सत्संग नहीं कर सकते, सैकड़ों मंदिर की पूजा और तीर्थों की यात्राएं नहीं कर सकते, वह काम सकारात्मकता संबंधी यह मंत्र कर जाएगा। आपका व्यक्तित्व चहचहा उठेगा। आपके मित्रों और प्रशंसकों की लंबी कतार लग जाएगी और आप इस संत्रास से निजात पा सकोगे ।
अगर आपने अपना ध्यान सकारात्मकता पर केंद्रित कर लिया तब न केवल अच्छे विचार आएंगे, बल्कि आप स्वयं के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ हो पाएंगे। यह स्थिति आते ही आपके कार्यों पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ना आरंभ हो जाएगा। एक बार आपके मन में सकारात्मकता के विचार आना आरंभ हो गए तब आप अपने आप में स्वयं ही परिवर्तन देखेंगे और यह परिवर्तन आपके साथियों को भी नजर आने लगेगा।
सकारात्मकता अपने आप में सफलता, संतोष और संयम लेकर आती है। व्यक्ति मूलतः सकारात्मक ही होता है, परंतु कई बार गलत कदमों के कारण असफलता हाथ लग जाती है। इस असफलता का व्यक्ति पर कई तरह से असर पड़ता है। वह भावनात्मक रूप से टूटता है, वहीं इन सभी का असर उसके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है। व्यक्तित्व पर असर लंबे समय के लिए पड़ता है तथा वह कई बार अवसाद में भी चला जाता है और यही अवसाद संत्रास का रुप ले लेती है।
नकारात्मकता के कारण जो संत्रास पैदा हुई उस का जवाब सकारात्मकता के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता यह बात मन में बैठा लें। इसके बाद जो भी नकारात्मक विचार मन में आए उसके साथ तर्क करना सीखें और वह भी सकारात्मकता के साथ। जिस प्रकार से नकारात्मक विचार लगातार आते रहते हैं, ठीक उसी तरह से आप स्वयं से सकारात्मक विचारों के लिए स्वयं को प्रेरित करें और हमेशा के लिये सामाजिक संत्रास को अलविदा कह दें।
कमलेश अग्रवाल