अपने लिए जीये तो क्या जीये.. इस फिल्मी गीत की पंक्ति को पत्थर की लकीर मानकर हम सब महिलाओं ने इसका इस हद तक अनुकरण किया कि खुद को नजरअंदाज करने की आदत ही डाल ली | एक बात जान लें कि यदि आप दूसरे से प्रेम करना चाहती हैं तो ये बेहद मायने रखता है कि आप खुद को भी चाहें ? क्या आप खुद को जानती हैं या समझती हैं ? आपको अपने स्वाभिमान से प्रेम है ? खुद से प्रेम करना और दूसरों से प्रेम करना- ये दोनों बातें एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं । हमने सिर्फ दूसरों के लिए जीना सीखा है , खुद से प्यार करना नहीं सीखा…!!
हमें हमेशा यही सिखाया गया है कि खुद के लिए जीना, अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना स्वार्थ है और दूसरों के लिए जीना परमार्थ । कामकाजी महिला या घरेलू नारी यदि महीने भर की हाडतोड मेहनत के बाद पार्लर जाकर फेशियल या हेड मसाज कराना चाहे, स्पा लेना चाहे, कभी-कभार बाहर डिनर लेना चाहे (रोज खाना बनाने से अगर ऊब गई हैं), कभी पुराने मनपसंद गीत सुने, नॉवल पढे, गमलों में पौधों लगाये और हरियाली के बीच अपनी सांसों का स्पंदन महसूस करे तो क्या वह स्वार्थी है ? यदि आप का जवाब हां है, तो बेसक रहे । कामकाजी महिला या घरेलू महिला के लिये यह स्वार्थ भी अच्छा है । क्योंकि ऐसा स्वार्थ केवल उसके भीतर सिर्फ सकारात्मक सोच को जन्म नहीं दे रहा, बल्कि उसके आसपास के माहौल को भी स्वस्थ बना रहा है ।
दिन के 24 घंटे में एक-एक मिनट का हिसाब एक घरेलू या कामकाजी महिला के पास होता है । घर-परिवार, नौकरी में अपना करियर, बच्चों व माता-पिता या सास-ससूर की देखभाल……इन सबके लिए उसे कितना करना होता है तो क्या एक-दो घंटा खुद के लिए अगर वह निकालना चाहे तो क्या उसे स्वार्थी कहना सही होगा ? सबकी जिम्मेदारियां उठाने में खुद की जिम्मेदारी से मुंह मोडना कहां की समझदारी है ?
मैंने देखा है कि तीस-पैंतीस की उम्र तक पहुंचते पहुंचते 60-65 फीसदी महिलाओं का वजन बढना शुरू हो जाता है, ब्लड प्रेशर, शुगर, अर्थराइटिस जैसी तमाम बीमारियां उन्हें घेरने लगती हैं । एक सर्वेक्षणके मुताबिक हमारे देश में लगभग 93 प्रतिशत स्त्रियां एनीमिया से ग्रस्त हैं । तमाम स्वास्थ्य सुविधाओं के बावजूद भी आज प्रसव के दौरान मरने वाली स्त्रियों की तादाद में कमी नहीं आई है । कारण साफ है अपने आप पर ध्यान न देने की मानसिकता..!!
बच्चा बीमार होता है- तो वह दौडकर डॉक्टर के पास जाती है, पति के मामूली से सिरदर्द से परेशान हो जाती है । यहां तक कि पालतू जानवर भी बीमार होता है तो उसे लेकर डॉक्टर के पास भागी चली जाती है लेकिन जब अपनी बारी आती है, तब टाल-मटोल करती दिखाई देती है…!! आखिर इस की वजह क्या है ? शायद इस की वजह है खुद के बारे में सकारात्मक ढंग से न सोचना , बेवजह अपराधबोध से घिरे रहना और अपने स्वास्थ्य पर ध्यान न देना । क्या इस बात से नकारा जा सकता है कि स्वस्थ दिनचर्या और बेहतर सोच एक-दूसरे के पूरक हैं…!! अपने मन और शरीर को स्वस्थ और सुखी रखना हमारी नीजि जिम्मेदारी बनती है । अगर महिलायें घर के हर व्यक्ति का अच्छी तरह ध्यान रख सकती है तो फिर अपने लिये ये लापरवाहि क्यों ? अगर घर की नार स्वस्थ होगी तो घर का हर सदस्य स्वस्थ रहेगा , अगर सदस्य स्वस्थ होगा तो कार्य भी सही ढंग से कर पायेगा और अगर कार्य सही होगा तो देश आगे बढ पायेगा…..!!
मेरा मतलब बहनों , बस इतना ही है….आप अपने लिए भी जीयें….!! और मेरे भाईयों से भी गुजारिश है…..मा, बहन, बेटी या बहू के स्वास्थय पर भी कभी-कभार नजर डालें….अपने आप के फायदे के लिये ही सही…!!
कमलेश अग्रवाल
मै चाहूँगा कि लोंग इसे पढ़ें और इस सुझाव से लाभान्वित हों…….
आप की चाहत हो सकता है कि रंग लाये और ये लेख से महिलायें लाभाविंत हो….धन्यवाद